Summary
The Bhagavat said Yes. O the best among the Kurus ! I shall expound to you, only the chief auspicious manifesting powers of Mine. For, there would be no end to My details.
पदच्छेदः
Click to Toggle
वक्तुमर्हस्यशेषेण | वक्तुम् (√वच् + तुमुन्)–अर्हसि (√अर्ह् लट् म.पु. )–अशेषेण (अव्ययः) |
दिव्या | दिव्य (१.३) |
ह्यात्मविभूतयः | हि (अव्ययः)–आत्मन्–विभूति (१.३) |
प्राधान्यतः | प्राधान्य (५.१) |
कुरुश्रेष्ठ | कुरुश्रेष्ठ (८.१) |
नास्त्यन्तो | न (अव्ययः)–अस्ति (√अस् लट् प्र.पु. एक.)–अन्त (१.१) |
विस्तरस्य | विस्तर (६.१) |
मे | मद् (६.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|
ह | न्त | ते | क | थ | यि | ष्या | मि |
दि | व्या | ह्या | त्म | वि | भू | त | यः |
प्रा | धा | न्य | तः | कु | रु | श्रे | ष्ठ |
ना | स्त्य | न्तो | वि | स्त | र | स्य | मे |