Summary
O coneror of sleep ! I am the Soul residing in the heart of all beings; I am the beginning, and the middle and also the very end of beings.
पदच्छेदः
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अहमात्मा | मद् (१.१)–आत्मन् (१.१) |
गुडाकेश | गुडाकेश (८.१) |
सर्वभूताशयस्थितः | सर्व–भूत–आशय–स्थित (√स्था + क्त, १.१) |
अहमादिश्च | मद् (१.१)–आदि (१.१)–च (अव्ययः) |
मध्यं | मध्य (१.१) |
च | च (अव्ययः) |
भूतानामन्त | भूत (६.३)–अन्त (१.१) |
एव | एव (अव्ययः) |
च | च (अव्ययः) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | ह | मा | त्मा | गु | डा | के | श |
स | र्व | भू | ता | श | य | स्थि | तः |
अ | ह | मा | दि | श्च | म | ध्यं | च |
भू | ता | ना | म | न्त | ए | व | च |