Summary
Of the great seers, I am Bhrgu; of the words, I am the Single-syllable (Om); of the sacrifices [performed with external objects], I am the sacrifice of muttering prayer; of the immovables, I am the Himalayan range.
पदच्छेदः
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महर्षीणां | महत्–ऋषि (६.३) |
भृगुरहं | भृगु (१.१)–मद् (१.१) |
गिरामस्म्येकमक्षरम् | गिर् (६.३)–अस्मि (√अस् लट् उ.पु. )–एक (१.१)–अक्षर (१.१) |
यज्ञानां | यज्ञ (६.३) |
जपयज्ञो | जप–यज्ञ (१.१) |
ऽस्मि | अस्मि (√अस् लट् उ.पु. ) |
स्थावराणां | स्थावर (६.३) |
हिमालयः | हिमालय (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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म | ह | र्षी | णां | भृ | गु | र | हं |
गि | रा | म | स्म्ये | क | म | क्ष | रम् |
य | ज्ञा | नां | ज | प | य | ज्ञो | ऽस्मि |
स्था | व | रा | णां | हि | मा | ल | यः |