Summary
I am the punishment [at the hands] of the punishers; I am the political wisdom of those who seek victory; I am also silence of the secret ones; I am the knowledge of the knowers.
पदच्छेदः
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दण्डो | दण्ड (१.१) |
दमयतामस्मि | दमयत् (√दमय् + शतृ, ६.३)–अस्मि (√अस् लट् उ.पु. ) |
नीतिरस्मि | नीति (१.१)–अस्मि (√अस् लट् उ.पु. ) |
जिगीषताम् | जिगीषत् (६.३) |
मौनं | मौन (१.१) |
चैवास्मि | च (अव्ययः)–एव (अव्ययः)–अस्मि (√अस् लट् उ.पु. ) |
गुह्यानां | गुह्य (६.३) |
ज्ञानं | ज्ञान (१.१) |
ज्ञानवतामहम् | ज्ञानवत् (६.३)–मद् (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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द | ण्डो | द | म | य | ता | म | स्मि |
नी | ति | र | स्मि | जि | गी | ष | ताम् |
मौ | नं | चै | वा | स्मि | गु | ह्या | नां |
ज्ञा | नं | ज्ञा | न | व | ता | म | हम् |