Summary
Arjuna said My delusion has completely gone thanks to the great and mysterious discourse which is termed as a science governing the Soul and which You have delivered by way of favouring me.
पदच्छेदः
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मदनुग्रहाय | मद्–अनुग्रह (४.१) |
परमं | परम (१.१) |
गुह्यमध्यात्मसंज्ञितम् | गुह्य (१.१)–अध्यात्म–संज्ञित (१.१) |
यत्त्वयोक्तं | यद् (१.१)–त्वद् (३.१)–उक्त (√वच् + क्त, १.१) |
वचस्तेन | वचस् (१.१)–तद् (३.१) |
मोहो | मोह (१.१) |
ऽयं | इदम् (१.१) |
विगतो | विगत (√वि-गम् + क्त, १.१) |
मम | मद् (६.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ |
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म | द | नु | ग्र | हा | य | प | र |
मं | गु | ह्य | म | ध्या | त्म | सं | ज्ञि | तम् |
य | त्त्व | यो | क्तं | व | च | स्ते | न |
मो | हो | ऽयं | वि | ग | तो | म | म |