Summary
The origin and the dissolution of beings have been listened to in detail by me from You, O Lotus-eyed One, and also to [Your] inexhaustible greatness.
पदच्छेदः
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भवाप्ययौ | भव–अप्यय (१.२) |
हि | हि (अव्ययः) |
भूतानां | भूत (६.३) |
श्रुतौ | श्रुत (√श्रु + क्त, १.२) |
विस्तरशो | विस्तरशः (अव्ययः) |
मया | मद् (३.१) |
त्वत्तः | त्वद् (५.१) |
कमलपत्राक्ष | कमल–पत्त्र–अक्ष (८.१) |
माहात्म्यमपि | माहात्म्य (१.१)–अपि (अव्ययः) |
चाव्ययम् | च (अव्ययः)–अव्यय (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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भ | वा | प्य | यौ | हि | भू | ता | नां |
श्रु | तौ | वि | स्त | र | शो | म | या |
त्व | त्तः | क | म | ल | प | त्रा | क्ष |
मा | हा | त्म्य | म | पि | चा | व्य | यम् |