Summary
If the splendour of a thousand suns were to burst forth at once in the sky, would that be eal to the splendour of that Mighty Self ?
पदच्छेदः
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दिवि | दिव् (७.१) |
सूर्यसहस्रस्य | सूर्य–सहस्र (६.१) |
भवेद्युगपदुत्थिता | भवेत् (√भू विधिलिङ् प्र.पु. एक.)–युगपद् (अव्ययः)–उत्थित (√उत्-स्था + क्त, १.१) |
यदि | यदि (अव्ययः) |
भाः | भास् (१.१) |
सदृशी | सदृश (१.१) |
सा | तद् (१.१) |
स्याद्भासस्तस्य | स्यात् (√अस् विधिलिङ् प्र.पु. एक.)–भास् (६.१)–तद् (६.१) |
महात्मनः | महात्मन् (६.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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दि | वि | सू | र्य | स | ह | स्र | स्य |
भ | वे | द्यु | ग | प | दु | त्थि | ता |
य | दि | भाः | स | दृ | शी | सा | स्या |
द्भा | स | स्त | स्य | म | हा | त्म | नः |