Summary
Then, possessed by amazement and with his bodily hair thrilled, Dhananjaya (Arjuna) with his head bowed to the God and with folded palms spoke [to Him].
पदच्छेदः
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ततः | ततस् (अव्ययः) |
स | तद् (१.१) |
विस्मयाविष्टो | विस्मय–आविष्ट (√आ-विश् + क्त, १.१) |
हृष्टरोमा | हृष्ट (√हृष् + क्त)–रोमन् (१.१) |
धनंजयः | धनंजय (१.१) |
प्रणम्य | प्रणम्य (√प्र-नम् + ल्यप्) |
शिरसा | शिरस् (३.१) |
देवं | देव (२.१) |
कृताञ्जलिरभाषत | कृत (√कृ + क्त)–अञ्जलि (१.१)–अभाषत (√भाष् लङ् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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त | तः | स | वि | स्म | या | वि | ष्टो |
हृ | ष्ट | रो | मा | ध | नं | ज | यः |
प्र | ण | म्य | शि | र | सा | दे | वं |
कृ | ता | ञ्ज | लि | र | भा | ष | त |