Summary
I behold You of many arms, bellies, mouths and eyes and of infinite forms on all sides; of You, I find neither the end, nor the centre, nor the beginnng too, O Lord of the universe, O Universal-formed One !
पदच्छेदः
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अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं | अनेक–बाहु–उदर–वक्त्र–नेत्र (२.१) |
पश्यामि | पश्यामि (√दृश् लट् उ.पु. ) |
त्वा | त्वद् (२.१) |
सर्वतो | सर्वतस् (अव्ययः) |
ऽनन्तरूपम् | अनन्त–रूप (२.१) |
नान्तं | न (अव्ययः)–अन्त (२.१) |
न | न (अव्ययः) |
मध्यं | मध्य (२.१) |
न | न (अव्ययः) |
पुनस्तवादिं | पुनर् (अव्ययः)–त्वद् (६.१)–आदि (२.१) |
पश्यामि | पश्यामि (√दृश् लट् उ.पु. ) |
विश्वेश्वर | विश्वेश्वर (८.१) |
विश्वरूप | विश्वरूप (८.१) |
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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अ | ने | क | बा | हू | द | र | व | क्त्र | ने | त्रं |
प | श्या | मि | त्वा | स | र्व | तो | ऽन | न्त | रू | पम् |
ना | न्तं | न | म | ध्यं | न | पु | न | स्त | वा | दिं |
प | श्या | मि | वि | श्वे | श्व | र | वि | श्व | रू | प |