Summary
I behold You as having crowns, clubs and discs; as a mass of radiance, shining on all sides, hard to look at and on each side blazing like burning fire and the sun; and as an immeasurable one.
पदच्छेदः
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किरीटिनं | किरीटिन् (२.१) |
गदिनं | गदिन् (२.१) |
चक्रिणं | चक्रिन् (२.१) |
च | च (अव्ययः) |
तेजोराशिं | तेजस्–राशि (२.१) |
सर्वतो | सर्वतस् (अव्ययः) |
दीप्तिमन्तम् | दीप्तिमत् (२.१) |
पश्यामि | पश्यामि (√दृश् लट् उ.पु. ) |
त्वां | त्वद् (२.१) |
दुर्निरीक्ष्यं | दुर्निरीक्ष्य (२.१) |
समन्ताद्दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम् | समन्तात् (अव्ययः)–दीप्त (√दीप् + क्त)–अनल–अर्क–द्युति (२.१)–अप्रमेय (२.१) |
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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कि | री | टि | नं | ग | दि | नं | च | क्रि | णं | च |
ते | जो | रा | शिं | स | र्व | तो | दी | प्ति | म | न्तम् |
प | श्या | मि | त्वां | दु | र्नि | री | क्ष्यं | स | म | न्ता |
द्दी | प्ता | न | ला | र्क | द्यु | ति | म | प्र | मे | यम् |