Summary
These hosts of gods enter into You; some frightened ones recite [hymns] with folded palms; simply crying 'Hail !', the hosts of great seers praise You with the excellent praising hymns.
पदच्छेदः
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अमी | अदस् (१.३) |
हि | हि (अव्ययः) |
त्वा | त्वद् (२.१) |
सुरसंघा | सुर–संघ (१.३) |
विशन्ति | विशन्ति (√विश् लट् प्र.पु. बहु.) |
केचिद्भीताः | कश्चित् (१.३)–भीत (√भी + क्त, १.३) |
प्राञ्जलयो | प्राञ्जलि (१.३) |
गृणन्ति | गृणन्ति (√गृ लट् प्र.पु. बहु.) |
स्वस्तीत्युक्त्वा | स्वस्ति (१.१)–इति (अव्ययः)–उक्त्वा (√वच् + क्त्वा) |
महर्षिसिद्धसंघाः | महत्–ऋषि–सिद्ध–संघ (१.३) |
स्तुवन्ति | स्तुवन्ति (√स्तु लट् प्र.पु. बहु.) |
त्वां | त्वद् (२.१) |
स्तुतिभिः | स्तुति (३.३) |
पुष्कलाभिः | पुष्कल (३.३) |
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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अ | मी | हि | त्वा | सु | र | सं | घा | वि | श | न्ति |
के | चि | द्भी | ताः | प्रा | ञ्ज | ल | यो | गृ | ण | न्ति |
स्व | स्ती | त्यु | क्त्वा | म | ह | र्षि | सि | द्ध | सं | घाः |
स्तु | व | न्ति | त्वां | स्तु | ति | भिः | पु | ष्क | ला | भिः |