Summary
Just as many water-rapids of the rivers race heading towards the ocean alone, in the same manner these heroes of the world of men do enter into Your mouths flaming all around.
पदच्छेदः
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यथा | यथा (अव्ययः) |
नदीनां | नदी (६.३) |
बहवो | बहु (१.३) |
ऽम्बुवेगाः | अम्बु–वेग (१.३) |
समुद्रमेवाभिमुखा | समुद्र (२.१)–एव (अव्ययः)–अभिमुख (१.३) |
द्रवन्ति | द्रवन्ति (√द्रु लट् प्र.पु. बहु.) |
तथा | तथा (अव्ययः) |
तवामी | त्वद् (६.१)–अदस् (१.३) |
नरलोकवीरा | नर–लोक–वीर (१.३) |
विशन्ति | विशन्ति (√विश् लट् प्र.पु. बहु.) |
वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति | वक्त्र (२.३)–अभिविज्वलत् (√अभिवि-ज्वल् + शतृ, २.३) |
छन्दः
उपेन्द्रवज्रा [११: जतजगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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य | था | न | दी | नां | ब | ह | वो | ऽम्बु | वे | गाः |
स | मु | द्र | मे | वा | भि | मु | खा | द्र | व | न्ति |
त | था | त | वा | मी | न | र | लो | क | वी | रा |
वि | श | न्ति | व | क्त्रा | ण्य | भि | वि | ज्व | ल | न्ति |
ज | त | ज | ग | ग |