Summary
Devouring, on all sides with Your blazing mouths, the entire worlds, You are licking up; Your terrible rays scroch the entire universe filling it with their radiance, O Visnu !
पदच्छेदः
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लेलिह्यसे | लेलिह्यसे |
ग्रसमानः | ग्रसमान (√ग्रस् + शानच्, १.१) |
समन्ताल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः | समन्तात् (अव्ययः)–लोक (२.३)–समग्र (२.३)–वदन (३.३)–ज्वलत् (√ज्वल् + शतृ, ३.३) |
तेजोभिरापूर्य | तेजस् (३.३)–आपूर्य (√आ-पूरय् + ल्यप्) |
जगत्समग्रं | जगन्त् (२.१)–समग्र (२.१) |
भासस्तवोग्राः | भास् (१.३)–त्वद् (६.१)–उग्र (१.३) |
प्रतपन्ति | प्रतपन्ति (√प्र-तप् लट् प्र.पु. बहु.) |
विष्णो | विष्णु (८.१) |
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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ले | लि | ह्य | से | ग्र | स | मा | नः | स | म | न्ता |
ल्लो | का | न्स | म | ग्रा | न्व | द | नै | र्ज्व | ल | द्भिः |
ते | जो | भि | रा | पू | र्य | ज | ग | त्स | म | ग्रं |
भा | स | स्त | वो | ग्राः | प्र | त | प | न्ति | वि | ष्णो |