Summary
The Bhagavat said I am the Time, the world-destroyer, engaged here in withdrawing the worlds that are overgrown; even without you (your fighting) all the warriors, standing in the rival armies, would cease to be.
पदच्छेदः
Click to Toggle
कालो | काल (१.१) |
ऽस्मि | अस्मि (√अस् लट् उ.पु. ) |
लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो | लोक–क्षय–कृत् (१.१)–प्रवृद्ध (√प्र-वृध् + क्त, १.१) |
लोकान्समाहर्तुमिह | लोक (२.३)–समाहर्तुम् (√समा-हृ + तुमुन्)–इह (अव्ययः) |
प्रवृत्तः | प्रवृत्त (√प्र-वृत् + क्त, १.१) |
ऋते | ऋते (अव्ययः) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
त्वा | त्वद् (२.१) |
न | न (अव्ययः) |
भविष्यन्ति | भविष्यन्ति (√भू लृट् प्र.पु. बहु.) |
सर्वे | सर्व (१.३) |
ये | यद् (१.३) |
ऽवस्थिताः | अवस्थित (√अव-स्था + क्त, १.३) |
प्रत्यनीकेषु | प्रत्यनीक (७.३) |
योधाः | योध (१.३) |
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
---|
का | लो | ऽस्मि | लो | क | क्ष | य | कृ | त्प्र | वृ | द्धो |
लो | का | न्स | मा | ह | र्तु | मि | ह | प्र | वृ | त्तः |
ऋ | ते | ऽपि | त्वा | न | भ | वि | ष्य | न्ति | स | र्वे |
ये | ऽव | स्थि | ताः | प्र | त्य | नी | के | षु | यो | धाः |