Summary
Therefore, stand up, win glory, and vanishing foes, enjoy the rich kingdom; these [foes] have already been killed by Myself; [hence] be a mere token cause [in their destruction], O ambidextrous archer !
पदच्छेदः
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तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ | तस्मात् (अव्ययः)–त्वद् (१.१)–उत्तिष्ठ (√उत्-स्था लोट् म.पु. ) |
यशो | यशस् (२.१) |
लभस्व | लभस्व (√लभ् लोट् म.पु. ) |
जित्वा | जित्वा (√जि + क्त्वा) |
शत्रून्भुङ्क्ष्व | शत्रु (२.३)–भुङ्क्ष्व (√भुज् लोट् म.पु. ) |
राज्यं | राज्य (२.१) |
समृद्धम् | समृद्ध (√सम्-ऋध् + क्त, २.१) |
मयैवैते | मद् (३.१)–एव (अव्ययः)–एतद् (१.३) |
निहताः | निहत (√नि-हन् + क्त, १.३) |
पूर्वमेव | पूर्वम् (अव्ययः)–एव (अव्ययः) |
निमित्तमात्रं | निमित्त–मात्र (१.१) |
भव | भव (√भू लोट् म.पु. ) |
सव्यसाचिन् | सव्यसाचिन् (८.१) |
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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त | स्मा | त्त्व | मु | त्ति | ष्ठ | य | शो | ल | भ | स्व |
जि | त्वा | श | त्रू | न्भु | ङ्क्ष्व | रा | ज्यं | स | मृ | द्धम् |
म | यै | वै | ते | नि | ह | ताः | पू | र्व | मे | व |
नि | मि | त्त | मा | त्रं | भ | व | स | व्य | सा | चिन् |