Summary
Sanjaya said On hearing this speach of Kesava, the crowned-prince (Arjuna) had his palms folded; and trembling he protstrated himself to Krsna; and stammering, and being very much afraid and bowing down, he spoke to Him again.
पदच्छेदः
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एतच्छ्रुत्वा | एतद् (२.१)–श्रुत्वा (√श्रु + क्त्वा) |
वचनं | वचन (२.१) |
केशवस्य | केशव (६.१) |
कृताञ्जलिर्वेपमानः | कृताञ्जलि (१.१)–वेपमान (√विप् + शानच्, १.१) |
किरीटी | किरीटिन् (१.१) |
नमस्कृत्वा | नमस्कृत्वा (√नमस्-कृ + ल्यप्) |
भूय | भूयस् (अव्ययः) |
एवाह | एव (अव्ययः)–आह (√अह् लिट् प्र.पु. एक.) |
कृष्णं | कृष्ण (२.१) |
सगद्गदं | स (अव्ययः)–गद्गद (२.१) |
भीतभीतः | भीत (√भी + क्त)–भीत (√भी + क्त, १.१) |
प्रणम्य | प्रणम्य (√प्र-नम् + ल्यप्) |
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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ए | त | च्छ्रु | त्वा | व | च | नं | के | श | व | स्य |
कृ | ता | ञ्ज | लि | र्वे | प | मा | नः | कि | री | टी |
न | म | स्कृ | त्वा | भू | य | ए | वा | ह | कृ | ष्णं |
स | ग | द्ग | दं | भी | त | भी | तः | प्र | ण | म्य |