Summary
You are the father of the world of the moving and unmoving; You are the great preceptor of this universe; in the triad of worlds there is no one eal to You-How can there be anyone else superior ? - having greatness not comprehended.
पदच्छेदः
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पितासि | पितृ (१.१)–असि (√अस् लट् म.पु. ) |
लोकस्य | लोक (६.१) |
चराचरस्य | चराचर (६.१) |
त्वमस्य | त्वद् (१.१)–इदम् (६.१) |
पूज्यश्च | पूज्य (√पूजय् + कृत्, १.१)–च (अव्ययः) |
गुरुर्गरीयान् | गुरु (१.१)–गरीयस् (१.१) |
न | न (अव्ययः) |
त्वत्समो | त्वद्–सम (१.१) |
ऽस्त्यभ्यधिकः | अस्ति (√अस् लट् प्र.पु. एक.)–अभ्यधिक (१.१) |
कुतो | कुतस् (अव्ययः) |
ऽन्यो | अन्य (१.१) |
लोकत्रये | लोकत्रय (७.१) |
ऽप्यप्रतिमप्रभाव | अपि (अव्ययः)–अप्रतिम–प्रभाव (८.१) |
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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पि | ता | सि | लो | क | स्य | च | रा | च | र | स्य |
त्व | म | स्य | पू | ज्य | श्च | गु | रु | र्ग | री | यान् |
न | त्व | त्स | मो | ऽस्त्य | भ्य | धि | कः | कु | तो | ऽन्यो |
लो | क | त्र | ये | ऽप्य | प्र | ति | म | प्र | भा | व |