Summary
The Bhagavat said Behold, O son of Prtha, My divine forms in hundreds and in thousands and of varied nature and of varied colours and varied shapes.
पदच्छेदः
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पश्य | पश्य (√पश् लोट् म.पु. ) |
मे | मद् (६.१) |
पार्थ | पार्थ (८.१) |
रूपाणि | रूप (२.३) |
शतशो | शतशस् (अव्ययः) |
ऽथ | अथ (अव्ययः) |
सहस्रशः | सहस्रशस् (अव्ययः) |
नानाविधानि | नानाविध (२.३) |
दिव्यानि | दिव्य (२.३) |
नानावर्णाकृतीनि | नाना (अव्ययः)–वर्ण–आकृति (२.३) |
च | च (अव्ययः) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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प | श्य | मे | पा | र्थ | रू | पा | णि |
श | त | शो | ऽथ | स | ह | स्र | शः |
ना | ना | वि | धा | नि | दि | व्या | नि |
ना | ना | व | र्णा | कृ | ती | नि | च |