Summary
Arjuna said On seeing this gentle human form of Yours, O Janardana, now I have regained my nature and have now collected my thinking faculty.
पदच्छेदः
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दृष्ट्वेदं | दृष्ट्वा (√दृश् + क्त्वा)–इदम् (२.१) |
मानुषं | मानुष (२.१) |
रूपं | रूप (२.१) |
तव | त्वद् (६.१) |
सौम्यं | सौम्य (२.१) |
जनार्दन | जनार्दन (८.१) |
इदानीमस्मि | इदानीम् (अव्ययः)–अस्मि (√अस् लट् उ.पु. ) |
संवृत्तः | संवृत्त (√सम्-वृत् + क्त, १.१) |
सचेताः | स (अव्ययः)–चेतस् (१.१) |
प्रकृतिं | प्रकृति (२.१) |
गतः | गत (√गम् + क्त, १.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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दृ | ष्ट्वे | दं | मा | नु | षं | रू | पं |
त | व | सौ | म्यं | ज | ना | र्द | न |
इ | दा | नी | म | स्मि | सं | वृ | त्तः |
स | चे | ताः | प्र | कृ | तिं | ग | तः |