Summary
The Bhagavat said This form of Mine, which you have just observed is extremely difficult to observe; even gods are always curious of observing this form.
पदच्छेदः
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सुदुर्दर्शमिदं | सु (अव्ययः)–दुर्दर्श (२.१)–इदम् (२.१) |
रूपं | रूप (२.१) |
दृष्टवानसि | दृष्टवत् (√दृश् + क्तवतु, १.१)–असि (√अस् लट् म.पु. ) |
यन्मम | यद् (२.१)–मद् (६.१) |
देवा | देव (१.३) |
अप्यस्य | अपि (अव्ययः)–इदम् (६.१) |
रूपस्य | रूप (६.१) |
नित्यं | नित्यम् (अव्ययः) |
दर्शनकाङ्क्षिणः | दर्शन–काङ्क्षिन् (१.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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सु | दु | र्द | र्श | मि | दं | रू | पं |
दृ | ष्ट | वा | न | सि | य | न्म | म |
दे | वा | अ | प्य | स्य | रू | प | स्य |
नि | त्यं | द | र्श | न | का | ङ्क्षि | णः |