Summary
He, who performs actions for [attaining] Me; who regards Me as his supreme goal; who is devoted to Me; who is free from attachment; and who is free from hatred towards all beings-he attains me, O son of Pandu !
पदच्छेदः
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मत्कर्मकृन्मत्परमो | मद्–कर्मन्–कृत् (१.१)–मद्–परम (१.१) |
मद्भक्तः | मद्–भक्त (१.१) |
सङ्गवर्जितः | सङ्ग–वर्जित (√वर्जय् + क्त, १.१) |
निर्वैरः | निर्वैर (१.१) |
सर्वभूतेषु | सर्व–भूत (७.३) |
यः | यद् (१.१) |
स | तद् (१.१) |
मामेति | मद् (२.१)–एति (√इ लट् प्र.पु. एक.) |
पाण्डव | पाण्डव (८.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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म | त्क | र्म | कृ | न्म | त्प | र | मो |
म | द्भ | क्तः | स | ङ्ग | व | र्जि | तः |
नि | र्वै | रः | स | र्व | भू | ते | षु |
यः | स | मा | मे | ति | पा | ण्ड | व |