Summary
Now, behold the entire universe, including the moving and the unmoving, and whatsoever else you desire to see-all established in one here, in My body, O Gudakesa (Arjuna) !
पदच्छेदः
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इहैकस्थं | इह (अव्ययः)–एकस्थ (२.१) |
जगत्कृत्स्नं | जगन्त् (२.१)–कृत्स्न (२.१) |
पश्याद्य | पश्य (√पश् लोट् म.पु. )–अद्य (अव्ययः) |
सचराचरम् | सचराचर (२.१) |
मम | मद् (६.१) |
देहे | देह (७.१) |
गुडाकेश | गुडाकेश (८.१) |
यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि | यद् (२.१)–च (अव्ययः)–अन्य (२.१)–द्रष्टुम् (√दृश् + तुमुन्)–इच्छसि (√इष् लट् म.पु. ) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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इ | है | क | स्थं | ज | ग | त्कृ | त्स्नं |
प | श्या | द्य | स | च | रा | च | रम् |
म | म | दे | हे | गु | डा | के | श |
य | च्चा | न्य | द्द्र | ष्टु | मि | च्छ | सि |