Summary
Who remains well-content and is a man of Yoga at all times; who is self-controlled and is firmly resolute; and who has offered to Me his mind and intellect-that devotee of Mine is dear to Me.
पदच्छेदः
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संतुष्टः | संतुष्ट (√सम्-तुष् + क्त, १.१) |
सततं | सततम् (अव्ययः) |
योगी | योगिन् (१.१) |
यतात्मा | यत (√यम् + क्त)–आत्मन् (१.१) |
दृढनिश्चयः | दृढ–निश्चय (१.१) |
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयः | मद् (७.१)–अर्पित (√अर्पय् + क्त)–मनस्–बुद्धि (१.१)–मद् (२.१)–एव (अव्ययः)–एष्यसि (√इ लृट् म.पु. )–असंशय (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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सं | तु | ष्टः | स | त | तं | यो | गी |
य | ता | त्मा | दृ | ढ | नि | श्च | यः |
म | य्य | र्पि | त | म | नो | बु | द्धि |
र्यो | म | द्भ | क्तः | स | मे | प्रि | यः |