Summary
He, on account of whom the world does not get agitated; who too does not feel agitated on account of the world; who is free from joy and impatience, fear and anxiety-he is dear to Me.
पदच्छेदः
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यस्मान्नोद्विजते | यद् (५.१)–न (अव्ययः)–उद्विजते (√उत्-विज् लट् प्र.पु. एक.) |
लोको | लोक (१.१) |
लोकान्नोद्विजते | लोक (५.१)–न (अव्ययः)–उद्विजते (√उत्-विज् लट् प्र.पु. एक.) |
च | च (अव्ययः) |
यः | यद् (१.१) |
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो | हर्ष–अमर्ष–भय–उद्वेग (३.३)–मुक्त (√मुच् + क्त, १.१) |
यः | यद् (१.१) |
स | तद् (१.१) |
च | च (अव्ययः) |
मे | मद् (६.१) |
प्रियः | प्रिय (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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य | स्मा | न्नो | द्वि | ज | ते | लो | को |
लो | का | न्नो | द्वि | ज | ते | च | यः |
ह | र्षा | म | र्ष | भ | यो | द्वे | गै |
र्मु | क्तो | यः | स | च | मे | प्रि | यः |