Summary
He, who does not expect [anything]; who is pure, dexterous, unconcerned, untroubled; and who has renonced all his undertakings all around-that devotee of Mine is dear to Me.
पदच्छेदः
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अनपेक्षः | अनपेक्ष (१.१) |
शुचिर्दक्ष | शुचि (१.१)–दक्ष (१.१) |
उदासीनो | उदासीन (१.१) |
गतव्यथः | गत (√गम् + क्त)–व्यथा (१.१) |
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो | मद् (७.१)–अर्पित (√अर्पय् + क्त)–मनस्–बुद्धि (१.१)–यद् (१.१) |
मद्भक्तः | मद्–भक्त (१.१) |
स | तद् (१.१) |
मे | मद् (६.१) |
प्रियः | प्रिय (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | न | पे | क्षः | शु | चि | र्द | क्ष |
उ | दा | सी | नो | ग | त | व्य | थः |
स | र्वा | र | म्भ | प | रि | त्या | गी |
यो | म | द्भ | क्तः | स | मे | प्रि | यः |