Summary
He, who neither delights no hates, nor grieves, nor craves; who has renounced both the good and the bad results [of actions] and is full of devotion [to Me]-he is dear to Me.
पदच्छेदः
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यो | यद् (१.१) |
न | न (अव्ययः) |
हृष्यति | हृष्यति (√हृष् लट् प्र.पु. एक.) |
न | न (अव्ययः) |
द्वेष्टि | द्वेष्टि (√द्विष् लट् प्र.पु. एक.) |
न | न (अव्ययः) |
शोचति | शोचति (√शुच् लट् प्र.पु. एक.) |
न | न (अव्ययः) |
काङ्क्षति | काङ्क्षति (√काङ्क्ष् लट् प्र.पु. एक.) |
सर्वारम्भपरित्यागी | सर्व–आरम्भ–परित्यागिन् (१.१) |
यो | यद् (१.१) |
मद्भक्तः | मद्–भक्त (१.१) |
स | तद् (१.१) |
मे | मद् (६.१) |
प्रियः | प्रिय (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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यो | न | हृ | ष्य | ति | न | द्वे | ष्टि |
न | शो | च | ति | न | का | ङ्क्ष | ति |
शु | भा | शु | भ | प | रि | त्या | गी |
भ | क्ति | मा | न्यः | स | मे | प्रि | यः |