Summary
On the other hand, those who, having renounced all their actions in Me, have Me [alone] their goal; and revere Me, meditating on Me by that Yoga alone, which admits no other element but Me in it;
पदच्छेदः
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मयि | मद् (७.१) |
सर्वाणि | सर्व (२.३) |
कर्माणि | कर्मन् (२.३) |
संन्यस्याध्यात्मचेतसा | संन्यस्य (√संनि-अस् + ल्यप्)–अध्यात्म–चेतस् (३.१) |
मय्यावेश्य | मद् (७.१)–आवेश्य (√आ-वेशय् + ल्यप्) |
मनो | मनस् (२.१) |
ये | यद् (१.३) |
मां | मद् (२.१) |
नित्ययुक्ता | नित्य–युक्त (√युज् + क्त, १.३) |
उपासते | उपासते (√उप-आस् लट् प्र.पु. बहु.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ये | तु | स | र्वा | णि | क | र्मा | णि |
म | यि | सं | न्य | स्य | म | त्प | राः |
अ | न | न्ये | नै | व | यो | गे | न |
मां | ध्या | य | न्त | उ | पा | स | ते |