Summary
Of them, having their mind completely entered in Me, I become, before long, a redeemer from the ocean of the death-cycle, O son of Prtha !
पदच्छेदः
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तेषामहं | तद् (६.३)–मद् (१.१) |
समुद्धर्ता | समुद्धर्तृ (१.१) |
मृत्युसंसारसागरात् | मृत्यु–संसार–सागर (५.१) |
भवामि | भवामि (√भू लट् उ.पु. ) |
नचिरात्पार्थ | नचिरात् (अव्ययः)–पार्थ (८.१) |
मय्यावेशितचेतसाम् | मद् (७.१)–आवेशित (√आ-वेशय् + क्त)–चेतस् (६.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ते | षा | म | हं | स | मु | द्ध | र्ता |
मृ | त्यु | सं | सा | र | सा | ग | रात् |
भ | वा | मि | न | चि | रा | त्पा | र्थ |
म | य्या | वे | शि | त | चे | त | साम् |