Summary
In case you are not able to cause your mind to enter completley into Me, then, O Dhananjaya ! seek to attain Me by the practice-Yoga.
पदच्छेदः
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अथ | अथ (अव्ययः) |
चित्तं | चित्त (२.१) |
समाधातुं | समाधातुम् (√समा-धा + तुमुन्) |
न | न (अव्ययः) |
शक्नोषि | शक्नोषि (√शक् लट् म.पु. ) |
मयि | मद् (७.१) |
स्थिरम् | स्थिर (२.१) |
अभ्यासयोगेन | अभ्यास–योग (३.१) |
ततो | ततस् (अव्ययः) |
मामिच्छाप्तुं | मद् (२.१)–इच्छ (√इष् लोट् म.पु. )–आप्तुम् (√आप् + तुमुन्) |
धनंजय | धनंजय (८.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | थ | चि | त्तं | स | मा | धा | तुं |
न | श | क्नो | षि | म | यि | स्थि | रम् |
अ | भ्या | स | यो | गे | न | त | तो |
मा | मि | च्छा | प्तुं | ध | नं | ज | य |