Summary
I shall describe that which is to be known, by knowing which one attains freedom from death : beginningless is the Supreme Brahman; It is said to be neither existent nor non-existent.
पदच्छेदः
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तत्ते | तद् (२.१)–त्वद् (४.१) |
कर्म | कर्मन् (२.१) |
प्रवक्ष्यामि | प्रवक्ष्यामि (√प्र-वच् लृट् उ.पु. ) |
यज्ज्ञात्वा | यद् (२.१)–ज्ञात्वा (√ज्ञा + क्त्वा) |
मोक्ष्यसे | मोक्ष्यसे (√मुच् लृट् म.पु. ) |
ऽशुभात् | अशुभ (५.१) |
अनादिमत्परं | अनादिमत् (२.१)–पर (२.१) |
ब्रह्म | ब्रह्मन् (२.१) |
न | न (अव्ययः) |
सत्तन्नासदुच्यते | सत् (√अस् + शतृ, १.१)–तद् (१.१)–न (अव्ययः)–असत् (१.१)–उच्यते (√वच् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ज्ञे | यं | य | त्त | त्प्र | व | क्ष्या | मि |
य | ज्ज्ञा | त्वा | मृ | त | म | श्नु | ते |
अ | ना | दि | म | त्प | रं | ब्र | ह्म |
न | स | त्त | न्ना | स | दु | च्य | ते |