Summary
It has hands and feet of all, has eyes, heads and faces of all, has ears of all in the world; It remains enveloping all.
पदच्छेदः
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सर्वतःपाणिपादं | सर्वतस् (अव्ययः)–पाणि–पाद (१.१) |
तत्सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम् | तद् (१.१)–सर्वतस् (अव्ययः)–अक्षि–शिरस्–मुख (१.१) |
सर्वतःश्रुतिमल्लोके | सर्वतस् (अव्ययः)–श्रुतिमत् (१.१)–लोक (७.१) |
सर्वमावृत्य | सर्व (२.१)–आवृत्य (√आ-वृ + ल्यप्) |
तिष्ठति | तिष्ठति (√स्था लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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स | र्व | तः | पा | णि | पा | दं | त |
त्स | र्व | तो | क्षि | शि | रो | मु | खम् |
स | र्व | तः | श्रु | ति | म | ल्लो | के |
स | र्व | मा | वृ | त्य | ति | ष्ठ | ति |