Summary
It causes all the sense-alities to shine; [yet] It is without any sense-organ; It is unattached, yet all-supporting; It is free from the Strands, yet enjoys the Strands.
पदच्छेदः
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सर्वेन्द्रियगुणाभासं | सर्व–इन्द्रिय–गुण–आभास (१.१) |
सर्वेन्द्रियविवर्जितम् | सर्व–इन्द्रिय–विवर्जित (√वि-वर्जय् + क्त, १.१) |
असक्तं | असक्त (१.१) |
सर्वभृच्चैव | सर्व–भृत् (१.१)–च (अव्ययः)–एव (अव्ययः) |
निर्गुणं | निर्गुण (१.१) |
गुणभोक्तृ | गुण–भोक्तृ (१.१) |
च | च (अव्ययः) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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स | र्वे | न्द्रि | य | गु | णा | भा | सं |
स | र्वे | न्द्रि | य | वि | व | र्जि | तम् |
अ | स | क्तं | स | र्व | भृ | च्चै | व |
नि | र्गु | णं | गु | ण | भो | क्तृ | च |