Summary
It is without and within every being and is unmoving and yet moving too; due to Its subtle nature It is incomprehensible; It exists far away, yet near It is.
पदच्छेदः
Click to Toggle
बहिरन्तश्च | बहिस् (अव्ययः)–अन्तर् (अव्ययः)–च (अव्ययः) |
भूतानामचरं | भूत (६.३)–अचर (१.१) |
चरमेव | चर (१.१)–एव (अव्ययः) |
च | च (अव्ययः) |
सूक्ष्मत्वात्तदविज्ञेयं | सूक्ष्म–त्व (५.१)–तद् (१.१)–अविज्ञेय (१.१) |
दूरस्थं | दूर–स्थ (१.१) |
चान्तिके | च (अव्ययः)–अन्तिक (७.१) |
च | च (अव्ययः) |
तत् | तद् (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|
ब | हि | र | न्त | श्च | भू | ता | ना |
म | च | रं | च | र | मे | व | च |
सू | क्ष्म | त्वा | त्त | द | वि | ज्ञे | यं |
दू | र | स्थं | चा | न्ति | के | च | तत् |