Summary
This is the Light even of [all] the lights, [and] is stated to be beyond darkness; It is to be known by [the above] knowledge; It is to be attained [only] by knowledge; and It distinctly remains in the heart of all.
पदच्छेदः
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ज्योतिषामपि | ज्योतिस् (६.३)–अपि (अव्ययः) |
परमुच्यते | पर (१.१)–उच्यते (√वच् प्र.पु. एक.) |
ज्ञानं | ज्ञान (१.१) |
ज्ञेयं | ज्ञेय (√ज्ञा + कृत्, १.१) |
ज्ञानगम्यं | ज्ञान–गम्य (√गम् + कृत्, १.१) |
हृदि | हृद् (७.१) |
सर्वस्य | सर्व (६.१) |
विष्ठितम् | विष्ठित (√वि-स्था + क्त, १.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ज्यो | ति | षा | म | पि | त | ज्ज्यो | ति |
स्त | म | सः | प | र | मु | च्य | ते |
ज्ञा | नं | ज्ञे | यं | ज्ञा | न | ग | म्यं |
हृ | दि | स | र्व | स्य | वि | ष्ठि | तम् |