Summary
This field as well as the knowledge and what is to be known, all are mentioned collectively; clearly understanding this, My devotee becomes worthy of My state.
पदच्छेदः
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इति | इति (अव्ययः) |
क्षेत्रं | क्षेत्र (१.१) |
तथा | तथा (अव्ययः) |
ज्ञानं | ज्ञान (१.१) |
ज्ञेयं | ज्ञेय (√ज्ञा + कृत्, १.१) |
चोक्तं | च (अव्ययः)–उक्त (√वच् + क्त, १.१) |
समासतः | समासतस् (अव्ययः) |
मद्भक्त | मद्–भक्त (१.१) |
एतद्विज्ञाय | एतद् (२.१)–विज्ञाय (√वि-ज्ञा + ल्यप्) |
मद्भावायोपपद्यते | मद्–भाव (४.१)–उपपद्यते (√उप-पद् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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इ | ति | क्षे | त्रं | त | था | ज्ञा | नं |
ज्ञे | यं | चो | क्तं | स | मा | स | तः |
म | द्भ | क्त | ए | त | द्वि | ज्ञा | य |
म | द्भा | वा | यो | प | प | द्य | ते |