Summary
Both the Material Cause and the Soul too are beginningless, you should know this; you should also know that the modifications and Strands are born of the Material Cause.
पदच्छेदः
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प्रकृतिं | प्रकृति (२.१) |
पुरुषं | पुरुष (२.१) |
चैव | च (अव्ययः)–एव (अव्ययः) |
विद्ध्यनादी | विद्धि (√विद् लोट् म.पु. )–अनादि (२.२) |
उभावपि | उभ् (२.२)–अपि (अव्ययः) |
विकारांश्च | विकार (२.३)–च (अव्ययः) |
गुणांश्चैव | गुण (२.३)–च (अव्ययः)–एव (अव्ययः) |
विद्धि | विद्धि (√विद् लोट् म.पु. ) |
प्रकृतिसंभवान् | प्रकृति–सम्भव (२.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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प्र | कृ | तिं | पु | रु | षं | चै | व |
वि | द्ध्य | ना | दी | उ | भा | व | पि |
वि | का | रां | श्च | गु | णां | श्चै | व |
वि | द्धि | प्र | कृ | ति | सं | भ | वान् |