Summary
O descendant of Bharata ! You should know Me to be also the Field-sensitizer in the Fields of all. The knowledge of the Field and the Field-sensitizer-that knowledge is [in fact] the understanding of Me.
पदच्छेदः
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क्षेत्रज्ञं | क्षेत्रज्ञ (२.१) |
चापि | च (अव्ययः)–अपि (अव्ययः) |
मां | मद् (२.१) |
विद्धि | विद्धि (√विद् लोट् म.पु. ) |
सर्वक्षेत्रेषु | सर्व–क्षेत्र (७.३) |
भारत | भारत (८.१) |
क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं | क्षेत्र–क्षेत्रज्ञ (६.२)–ज्ञान (१.१) |
यत्तज्ज्ञानं | यद् (१.१)–तद् (१.१)–ज्ञान (१.१) |
मतं | मत (√मन् + क्त, १.१) |
मम | मद् (६.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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क्षे | त्र | ज्ञं | चा | पि | मां | वि | द्धि |
स | र्व | क्षे | त्रे | षु | भा | र | त |
क्षे | त्र | क्षे | त्र | ज्ञ | यो | र्ज्ञा | नं |
य | त्त | ज्ज्ञा | नं | म | तं | म | म |