Summary
But others, who have no knowledge of this nature, listen from others and practise reflection [accordingly] they too, being devoted to what they have heard, do cross over death.
पदच्छेदः
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अन्ये | अन्य (१.३) |
त्वेवमजानन्तः | तु (अव्ययः)–एवम् (अव्ययः)–अजानत् (१.३) |
श्रुत्वान्येभ्य | श्रुत्वा (√श्रु + क्त्वा)–अन्य (५.३) |
उपासते | उपासते (√उप-आस् लट् प्र.पु. एक.) |
ते | तद् (१.३) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
चातितरन्त्येव | च (अव्ययः)–अतितरन्ति (√अति-तृ लट् प्र.पु. बहु.)–एव (अव्ययः) |
मृत्युं | मृत्यु (२.१) |
श्रुतिपरायणाः | श्रुति–परायण (१.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | न्ये | त्वे | व | म | जा | न | न्तः |
श्रु | त्वा | न्ये | भ्य | उ | पा | स | ते |
ते | ऽपि | चा | ति | त | र | न्त्ये | व |
मृ | त्युं | श्रु | ति | प | रा | य | णाः |