Summary
Those who thus understand, with the knowledge-eye, the inner Soul of the Field and the Field-sensitizer and also the deliverance from the Material Cause of the elements-they attain the Supreme.
पदच्छेदः
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क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं | क्षेत्र–क्षेत्रज्ञ (६.२)–ज्ञान (१.१) |
यत्तज्ज्ञानं | यद् (१.१)–तद् (१.१)–ज्ञान (१.१) |
मतं | मत (√मन् + क्त, १.१) |
मम | मद् (६.१) |
भूतप्रकृतिमोक्षं | भूत–प्रकृति–मोक्ष (२.१) |
च | च (अव्ययः) |
ये | यद् (१.३) |
विदुर्यान्ति | विदुः (√विद् लिट् प्र.पु. बहु.)–यान्ति (√या लट् प्र.पु. बहु.) |
ते | तद् (१.३) |
परम् | पर (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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क्षे | त्र | क्षे | त्र | ज्ञ | यो | रे | व |
म | न्त | रं | ज्ञा | न | च | क्षु | षा |
भू | त | प्र | कृ | ति | मो | क्षं | च |
ये | वि | दु | र्या | न्ति | ते | प | रम् |