Summary
The Bhagavat said Further, once again I shall explain the supreme knowledge, the best among the knowledges, by knowing which all the seers have gone from here to the Supreme Success.
पदच्छेदः
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परं | पर (२.१) |
भूयः | भूयस् (अव्ययः) |
प्रवक्ष्यामि | प्रवक्ष्यामि (√प्र-वच् लृट् उ.पु. ) |
ज्ञानानां | ज्ञान (६.३) |
ज्ञानमुत्तमम् | ज्ञान (२.१)–उत्तम (२.१) |
यज्ज्ञात्वा | यद् (२.१)–ज्ञात्वा (√ज्ञा + क्त्वा) |
मुनयः | मुनि (१.३) |
सर्वे | सर्व (१.३) |
परां | पर (२.१) |
सिद्धिमितो | सिद्धि (२.१)–इतस् (अव्ययः) |
गताः | गत (√गम् + क्त, १.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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प | रं | भू | यः | प्र | व | क्ष्या | मि |
ज्ञा | ना | नां | ज्ञा | न | मु | त्त | मम् |
य | ज्ज्ञा | त्वा | मु | न | यः | स | र्वे |
प | रां | सि | द्धि | मि | तो | ग | ताः |