Summary
Holding on to this knowledge, they have attained the state of having attributes common with Me; [and] they are neither born even at the time of creation [of the world], nor do they come to grief at the time of dissolution [of it].
पदच्छेदः
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इदं | इदम् (२.१) |
ज्ञानमुपाश्रित्य | ज्ञान (२.१)–उपाश्रित्य (√उपा-श्रि + ल्यप्) |
मम | मद् (६.१) |
साधर्म्यमागताः | साधर्म्य (२.१)–आगत (√आ-गम् + क्त, १.३) |
सर्गे | सर्ग (७.१) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
नोपजायन्ते | न (अव्ययः)–उपजायन्ते (√उप-जन् लट् प्र.पु. बहु.) |
प्रलये | प्रलय (७.१) |
न | न (अव्ययः) |
व्यथन्ति | व्यथन्ति (√व्यथ् लट् प्र.पु. बहु.) |
च | च (अव्ययः) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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इ | दं | ज्ञा | न | मु | पा | श्रि | त्य |
म | म | सा | ध | र्म्य | मा | ग | ताः |
स | र्गे | ऽपि | नो | प | जा | य | न्ते |
प्र | ल | ये | न | व्य | थ | न्ति | च |