Summary
Transcending these three Strands, of which the body [etc.] is born, the Embodied (the Soul), being freed from birth, death, old age and sorrow, attains immortality.
पदच्छेदः
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गुणानेतानतीत्य | गुण (२.३)–एतद् (२.३)–अतीत्य (√अति-इ + ल्यप्) |
त्रीन्देही | त्रि (२.३)–देहिन् (१.१) |
देहसमुद्भवान् | देह–समुद्भव (२.३) |
जन्ममृत्युजरादुःखैर्विमुक्तो | जन्मन्–मृत्यु–जरा–दुःख (३.३)–विमुक्त (√वि-मुच् + क्त, १.१) |
ऽमृतमश्नुते | अमृत (२.१)–अश्नुते (√अश् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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गु | णा | ने | ता | न | ती | त्य | त्री |
न्दे | ही | दे | ह | स | मु | द्भ | वान् |
ज | न्म | मृ | त्यु | ज | रा | दुः | खै |
र्वि | मु | क्तो | ऽमृ | त | म | श्नु | ते |