Summary
Arjuna said O Master ! with what characteristic marks does he, who has transcended these three Strands, exist ? Of what behaviour is he ? And, how does he pass beyond these three Strands ?
पदच्छेदः
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कैर्लिङ्गैस्त्रीन्गुणानेतानतीतो | क (३.३)–लिङ्ग (३.३)–त्रि (२.३)–गुण (२.३)–एतद् (२.३)–अतीत (√अति-इ + क्त, १.१) |
भवति | भवति (√भू लट् प्र.पु. एक.) |
प्रभो | प्रभु (८.१) |
किमाचारः | किमाचार (१.१) |
कथं | कथम् (अव्ययः) |
चैतांस्त्रीन्गुणानतिवर्तते | च (अव्ययः)–एतद् (२.३)–त्रि (२.३)–गुण (२.३)–अतिवर्तते (√अति-वृत् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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कै | र्लि | ङ्गै | स्त्री | न्गु | णा | ने | ता |
न | ती | तो | भ | व | ति | प्र | भो |
कि | मा | चा | रः | क | थं | चै | तां |
स्त्री | न्गु | णा | न | ति | व | र्त | ते |