Summary
'I' is the place of support for the immortal and changeless Brahman and for [Its] eternal attribute, the unalloyed Happiness.
पदच्छेदः
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ब्रह्मणो | ब्रह्मन् (६.१) |
हि | हि (अव्ययः) |
प्रतिष्ठाहममृतस्याव्ययस्य | प्रतिष्ठा (१.१)–मद् (१.१)–अमृत (६.१)–अव्यय (६.१) |
च | च (अव्ययः) |
शाश्वतस्य | शाश्वत (६.१) |
च | च (अव्ययः) |
धर्मस्य | धर्म (६.१) |
सुखस्यैकान्तिकस्य | सुख (६.१)–ऐकान्तिक (६.१) |
च | च (अव्ययः) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ब्र | ह्म | णो | हि | प्र | ति | ष्ठा | ह |
म | मृ | त | स्या | व्य | य | स्य | च |
शा | श्व | त | स्य | च | ध | र्म | स्य |
सु | ख | स्यै | का | न्ति | क | स्य | च |