Summary
O son of Kunti ! Whatever manifestations spring up in all the wombs, of them the mighty Brahman is the womb and I am the father laying the seed.
पदच्छेदः
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सर्वयोनिषु | सर्व–योनि (७.३) |
कौन्तेय | कौन्तेय (८.१) |
मूर्तयः | मूर्ति (१.३) |
सम्भवन्ति | सम्भवन्ति (√सम्-भू लट् प्र.पु. बहु.) |
याः | यद् (१.३) |
तासां | तद् (६.३) |
ब्रह्म | ब्रह्मन् (१.१) |
महद्योनिर् | महत् (१.१)–योनि (१.१) |
अहं | मद् (१.१) |
बीजप्रदः | बीज–प्रद (१.१) |
पिता | पितृ (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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स | र्व | यो | नि | षु | कौ | न्ते | य |
मू | र्त | यः | सं | भ | व | न्ति | याः |
ता | सां | ब्र | ह्म | म | ह | द्यो | नि |
र | हं | बी | ज | प्र | दः | पि | ता |