Summary
You should know that the Rajas is of the nature of desire and is a source of craving-attachment; and it binds the embodied by the attachment to action, O son of Kunti !
पदच्छेदः
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रजो | रजस् (२.१) |
रागात्मकं | राग–आत्मक (२.१) |
विद्धि | विद्धि (√विद् लोट् म.पु. ) |
तृष्णासङ्गसमुद्भवम् | तृष्णा–सङ्ग–समुद्भव (२.१) |
तन्निबध्नाति | तद् (१.१)–निबध्नाति (√नि-बन्ध् लट् प्र.पु. एक.) |
कौन्तेय | कौन्तेय (८.१) |
कर्मसङ्गेन | कर्मन्–सङ्ग (३.१) |
देहिनम् | देहिन् (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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र | जो | रा | गा | त्म | कं | वि | द्धि |
तृ | ष्णा | स | ङ्ग | स | मु | द्भ | वम् |
त | न्नि | ब | ध्ना | ति | कौ | न्ते | य |
क | र्म | स | ङ्गे | न | दे | हि | नम् |