Summary
The deluded do not perceive; [but] the men of knowledge-eye do see Him, as He dwells of rises up or enjoys what is endowed with Strands.
पदच्छेदः
Click to Toggle
उत्क्रामन्तं | उत्क्रामत् (√उत्-क्रम् + शतृ, २.१) |
स्थितं | स्थित (√स्था + क्त, २.१) |
वापि | वा (अव्ययः)–अपि (अव्ययः) |
भुञ्जानं | भुञ्जान (√भुज् + शानच्, २.१) |
वा | वा (अव्ययः) |
गुणान्वितम् | गुण–अन्वित (२.१) |
विमूढा | विमूढ (√वि-मुह् + क्त, १.३) |
नानुपश्यन्ति | न (अव्ययः)–अनुपश्यन्ति (√अनु-पश् लट् प्र.पु. बहु.) |
पश्यन्ति | पश्यन्ति (√दृश् लट् प्र.पु. बहु.) |
ज्ञानचक्षुषः | ज्ञान–चक्षुस् (१.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|
उ | त्क्रा | म | न्तं | स्थि | तं | वा | पि |
भु | ञ्जा | नं | वा | गु | णा | न्वि | तम् |
वि | मू | ढा | ना | नु | प | श्य | न्ति |
प | श्य | न्ति | ज्ञा | न | च | क्षु | षः |