Summary
Presiding over the ear, the eye, the touch-sense the taste-sense and also the smell-sense and the mind, He enjoys the sense objects.
पदच्छेदः
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श्रोत्रं | श्रोत्र (२.१) |
चक्षुः | चक्षुस् (२.१) |
स्पर्शनं | स्पर्शन (२.१) |
च | च (अव्ययः) |
रसनं | रसन (२.१) |
घ्राणमेव | घ्राण (२.१)–एव (अव्ययः) |
च | च (अव्ययः) |
अधिष्ठाय | अधिष्ठाय (√अधि-स्था + ल्यप्) |
मनश्चायं | मनस् (२.१)–च (अव्ययः)–इदम् (१.१) |
विषयानुपसेवते | विषय (२.३)–उपसेवते (√उप-सेव् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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श्रो | त्रं | च | क्षुः | स्प | र्श | नं | च |
र | स | नं | घ्रा | ण | मे | व | च |
अ | धि | ष्ठा | य | म | न | श्चा | यं |
वि | ष | या | नु | प | से | व | ते |