Summary
Being the digestive fire dwelling within the body of living creatures, and being in association with the upward and downward winds [of the body], I digest the four kinds of food.
पदच्छेदः
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अहं | मद् (१.१) |
वैश्वानरो | वैश्वानर (१.१) |
भूत्वा | भूत्वा (√भू + क्त्वा) |
प्राणिनां | प्राणिन् (६.३) |
देहमाश्रितः | देह (२.१)–आश्रित (√आ-श्रि + क्त, १.१) |
प्राणापानसमायुक्तः | प्राण–अपान–समायुक्त (√समा-युज् + क्त, १.१) |
पचाम्यन्नं | पचामि (√पच् लट् उ.पु. )–अन्न (२.१) |
चतुर्विधम् | चतुर्विध (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | हं | वै | श्वा | न | रो | भू | त्वा |
प्रा | णि | नां | दे | ह | मा | श्रि | तः |
प्रा | णा | पा | न | स | मा | यु | क्तः |
प | चा | म्य | न्नं | च | तु | र्वि | धम् |