Summary
Becuase, I have transcended the perishing and also the nonperishing, therefore I am acclaimed in the world as well as in the Veda as the Highest of persons.
पदच्छेदः
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यस्मात्क्षरमतीतो | यस्मात् (अव्ययः)–क्षर (२.१)–अतीत (√अति-इ + क्त, १.१) |
ऽहमक्षरादपि | मद् (१.१)–अक्षर (५.१)–अपि (अव्ययः) |
चोत्तमः | च (अव्ययः)–उत्तम (१.१) |
अतो | अतस् (अव्ययः) |
ऽस्मि | अस्मि (√अस् लट् उ.पु. ) |
लोके | लोक (७.१) |
वेदे | वेद (७.१) |
च | च (अव्ययः) |
प्रथितः | प्रथित (√प्रथ् + क्त, १.१) |
पुरुषोत्तमः | पुरुषोत्तम (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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य | स्मा | त्क्ष | र | म | ती | तो | ऽह |
म | क्ष | रा | द | पि | चो | त्त | मः |
अ | तो | ऽस्मि | लो | के | वे | दे | च |
प्र | थि | तः | पु | रु | षो | त्त | मः |